आदर्श : प्रेम
उप आदर्श : निष्ठा
केरल के गुर्वायुर में भगवान कृष्ण का मंदिर बहुत लोकप्रिय है और हज़ारों भक्त इस मंदिर में नियमित रूप से दर्शन के लिए आते हैं।
एक बार एक भक्त ने इस मंदिर में, अपने पैरों के दर्द से मुक्ति पाने की उम्मीद में ४१ दिनों की पूजा की। वह स्वयं चलने में असमर्थ था इसलिए उसे हर जगह उठाकर ले जाना पड़ता था। चूँकि वह अमीर था, इसलिए भाड़े पर लोग रखने में समर्थ था जो उसे ढोकर मंदिर के चारों ओर ले जाते। हर सुबह उसे नहाने के लिए मंदिर के तालाब तक उठाकर ले जाया जाता था। उसने इस प्रकार अपनी पूजा के ४० दिन पूर्ण कर लिए थे। परन्तु उसकी श्रद्धापूर्ण तथा सच्ची प्रार्थना के बावजूद उसकी पीड़ा में कोई सुधार नहीं था।
भगवान कृष्ण का एक और भक्त था जो गरीब था और उसी मंदिर में वह अपनी पुत्री के विवाह के लिए पूर्ण श्रद्धा से प्रार्थना कर रहा था। वर निर्धारित हो चुका था और उसकी बेटी की सगाई भी हो चुकी थी। पर उसके पास सोने के गहने खरीदने तथा विवाह का प्रबंध करने के लिए पैसे नहीं थे। इस भक्त के स्वप्न में भगवान आए और उसे अगली सुबह मंदिर के तालाब पर जाने का निर्देश दिया। भगवान ने भक्त को आदेश दिया कि उसे वहाँ सीढ़ियों पर एक छोटी-सी थैली मिलेगी जिसे लेकर वह पीछे देखे बिना भाग जाए।
अगला दिन अमीर भक्त के लिए ४१वां दिन था। हालाँकि उसके पैरों के दर्द में सुधार नहीं था पर फिर भी भगवान कृष्ण को अर्पण करने के लिए वह एक छोटी थैली में सोने के सिक्के लेकर आया था। स्नान के लिए जाने से पूर्व उसने थैली को मंदिर के तालाब की सीढ़ियों पर रखा। स्वप्न में भगवान के सुझाव के अनुसार वह गरीब भक्त मंदिर के तालाब पर गया और सीढ़ियों पर उसे एक छोटी सी थैली मिली। उसे उठाकर पीछे मुड़े बिना वह भाग गया। अमीर भक्त ने किसी को भगवान कृष्ण के लिए रखी थैली लेकर भागते हुए देखा। वह तत्काल पानी से बाहर निकला और उस चोर के पीछे भागने लगा। वह चोर को पकड़ नहीं पाया और निराश होकर लौट आया।
अचानक उसे यह अहसास हुआ कि चोर को पकड़ने के लिए वह दौड़ा था जबकि इससे पहले उसे उठाकर ले जाना पड़ता था। इस चमत्कार के अनुभव से अचंभित वह खड़ा का खड़ा ही रह गया। वह अति आनंदित था कि अब वह पूर्णतया पीड़ामुक्त था। भगवान कृष्ण की इस अनंत कृपा के लिए उसने प्रभु को प्रचुर धन्यवाद दिया। इस तरह ४१वे दिन ईश्वर अपने दोनों भक्तों की श्रद्धा से प्रसन्न हुए और उन्हें उदारतापूर्वक आशीर्वाद दिया। अमीर भक्त को अपने पैर के दर्द से मुक्ति मिली और गरीब भक्त को अपनी पुत्री के विवाह हेतु थैली में पर्याप्त सोने के सिक्के मिले।
दोनों ने कृपालु भगवान कृष्ण को अपनी प्रार्थनाएं सुनने के लिए धन्यवाद दिया।
सीख:
ईश्वर ने दोनों भक्तों को आशीर्वाद दिया और उनकी भक्ति को पुरस्कृत किया। यह कथांश मेरे मन में तब आया जब हमारे अतिप्रिय बाबा अमीर व गरीब, दोनों भक्तों को एक समान आशीर्वाद देते हैं। अमीर भक्तजन विभिन्न परियोजनाओं के लिए धन दान देते हैं जबकि गरीब भक्तजन इन परियोजनाओं को सफल बनाने के लिए निस्वार्थ सेवा करते हैं। भगवान के तौर-तरीके भिन्न हैं परन्तु वे हर उससे प्रेम करते हैं जो उनके प्रति निष्ठावान है।
स्त्रोत : http://premarpan.wordpress.com
वसुंधरा व अर्चना द्वारा अनुवादित