Archive | May 2023

तीन प्रकार के लोग 

 आदर्श: उचित आचरण, सच्चाई 

 उप आदर्श: भरोसा, निष्ठा 

एक शिक्षक कक्षा में एक छात्र को तीन खिलौने दिखाता है और छात्र से तीनों खिलौनों में अंतर बताने को कहता है। सभी तीन खिलौने अपने आकार, माप और वस्तुगत रूप से एक जैसे प्रतीत हो रहे थे।

खिलौनों को बारीकी व विस्तारपूर्वक देखने पर छात्र ने पाया कि उनमें छेद थे। पहले खिलौने के कानों में छेद थे; दूसरे खिलौने के कान और मुँह में छेद थे; और तीसरे खिलौने के एक कान में केवल एक छेद था। 

एक पतला व लंबा तिनका लेकर छात्र उसे पहले खिलौने के कान के छेद में डालता है। उसे यह देखकर आश्चर्य होता है कि वह तिनका दूसरे कान से बाहर निकल आता है। दूसरे खिलौने के कान में तिनका डालने पर वह उसके मुँह से बाहर निकल आता है। और अंत में, तीसरे खिलौने में तिनका डालने पर वह बाहर नहीं निकलता है। 

छात्र निम्न निष्कर्ष पर पहुँचता है:

पहला खिलौना आपके आसपास के उन लोगों का निरूपण करता है जो दिखाते तो हैं कि वह आपकी बात सुन रहें हैं और आपकी परवाह करते हैं लेकिन वह ऐसा करने का केवल ढोंग कर रहे होते हैं। उनपर भरोसा करके आप जो बातें उन्हें बताते हैं वह आपकी बात सुनने के बाद, जिस प्रकार तिनका दूसरे कान से निकल जाता है, उन्हें भूल जाते हैं।  अतः ऐसे लोगों से बात करते समय सावधान रहें।

दूसरा खिलौना उन लोगों को दर्शाता है जो आपकी बात सुनते हैं और ऐसा दिखाते हैं कि वह आपकी परवाह करते हैं। लेकिन जैसे खिलौने में तिनका मुँह से बाहर निकल आता है उसी तरह ऐसे लोग आपकी विश्वास में बताईं बातें बिना झिझक दूसरों को बता देते हैं।  

तीसरे खिलौने में तिनका बाहर नहीं निकलता है। यह विश्वसनीय लोगों का वर्णन करता है। यह वह लोग हैं जिन पर आप भरोसा कर सकते हैं। 

सीख: 

सदैव निष्ठावान व विश्वसनीय लोगों की संगत में रहें। आपकी बात सुनने वाले लोग सदैव वह नहीं होते हैं जिनपर आप ज़रूरत के समय विश्वास कर सकते हैं। 

Source: http://www.saibalsanskaar.wordpress.com

अनुवादक- अर्चना 

हम किससे अधिक प्रेम करते हैं?

आदर्श: शांति, सहनशीलता 

उप आदर्श: जल्दबाजी न करें, ग़ुस्से पर नियंत्रण रखें 

एक व्यक्ति अपनी नई गाड़ी को पालिश कर रहा था, जब उसकी 4 साल की बेटी ने एक पत्थर उठाया और गाड़ी के एक तरफ़ खरोंच दिया। 

ग़ुस्से में, क्रोधित पिता ने अपने बच्चे का हाथ लिया और उसपर वार करने लगा। उसे अहसास ही नहीं हुआ कि उसके हाथ में औज़ार था। कुछ समय बाद, जब उसे अहसास हुआ और बच्ची को झटपट अस्पताल ले गया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बच्ची के हाथ की कई हड्डियाँ टूटने के कारण वह अपनी सारी अंगुलियाँ खो चुकी थी।

जब बच्ची ने अपने पिता को देखा तो पीड़ापूर्ण आँखों से पूछा, “ पिताजी, मेरी अंगुलियाँ फिर से कब बढ़ेंगी?” पिता बहुत ही दुःखी व अवाक था। वह गाड़ी की ओर वापस गया और उसे बार-बार लात मारने लगा। अपनी ही करनी से उदास और परेशान, गाड़ी के सामने बैठकर उसने गाड़ी पर लगी खरोचों को देखा तो पाया कि उसकी बेटी ने लिखा था, “मैं आपसे प्यार करती हूँ, पापा”।

सीख:

क्रोध और प्रेम की कोई सीमा नहीं होती है। हमें सदैव याद रखना चाहिए, “वस्तुयें उपयोग करने के लिए होती हैं और लोग प्रेम करने के लिए होते हैं”। लेकिन दुर्भाग्यवश आज की दुनिया में “लोगों का उपयोग किया जा रहा है और वस्तुओं से प्रेम किया जा रहा है।“ यदि हम सहनशीलता और अपने ग़ुस्से पर नियंत्रण विकसित कर लें तो हम सब के प्रति प्रेम उत्पन्न कर सकते हैं।

Source: http://www.saibalsanskaar.wordpress.com

अनुवादक- अर्चना 

करोड़पति और तीन भिखारी 

आदर्श:  प्रेम 

उप आदर्श: माँगना और समर्पण करना 

किसी शहर में एक नेकदिल करोड़पति था। तीन भिखारियों ने उसके पास मदद के लिए जाने का सोचा। 

पहला भिखारी करोड़पति के पास गया और बोला, “हे प्रभु! मुझे पाँच रुपए चाहिए हैं। कृपया मुझे दीजिए।“ करोड़पति को उसके साहस और बेशर्मी पर बहुत आश्चर्य हुआ। 

“क्या! तुम मुझसे पाँच रुपए की माँग ऐसे कर रहे हो जैसे कि मैं तुम्हारा क़र्ज़दार हूँ।  तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई? मैं एक भिखारी को पाँच रुपए कैसे दे सकता हूँ? ये लो दो रुपए और यहाँ से चले जाओ, “ उसने कहा। वह आदमी दो रुपए लेकर चला गया। 

दूसरा भिखारी करोड़पति के पास गया और बोला, “हे प्रभु! मैंने पिछले दस दिनों से पेटभर भोजन नहीं किया है। कृपया मेरी मदद कीजिए।“

“तुम्हें कितने पैसे चाहिए?” करोड़पति ने पूछा।

“आप जो भी दें, मालिक, “ भिखारी ने जवाब दिया। 

“ये लो दस रुपए। कम से कम दस दिनों तक तुम अच्छा खाना खा सकते हो।“ भिखारी दस रुपए लेकर चला गया। 

तीसरा भिखारी आया, “हे प्रभु! मैंने आपके श्रेष्ठ व उत्तम गुणों के बारे में सुना है। इसलिए मैं आपसे मिलने आया हूँ। ऐसे परोपकारी व्यक्ति निस्संदेह धरती पर भगवान की अभिव्यक्ति हैं, “उसने कहा। 

“कृपया बैठो, “ करोड़पति बोला।

“तुम थके हुए लग रहे हो। कृपया यह भोजन ग्रहण करो, “ उसने कहा और भिखारी को खाना खाने के लिए दिया। 

“अब मुझे बताओ कि मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ।“

“अरे प्रभु,” भिखारी बोला; “मैं तो केवल आप जैसे महान व्यक्ति को मिलने आया था। आपने मुझे इतना उत्तम भोजन दिया है। मुझे आपसे और क्या चाहिए? आपने पहले ही मेरे प्रति विशेष मेहरबानी दिखाई है। ईश्वर आपको आशीष दे!”

लेकिन करोड़पति उस भिखारी के स्वभाव से बहुत ही प्रभावित था। उसने भिखारी से विनती की कि वह उसके साथ रहे, उसके लिए अपने परिसर में घर बनवाया और उसके शेष जीवन काल तक उसकी देखभाल की।

सीख:

 ईश्वर भी इस सज्जन करोड़पति की तरह हैं। तीन वर्गों के लोग अलग-अलग इच्छाएँ और प्रार्थनाएँ लेकर प्रभु के पास जाते हैं।

पहले प्रकार के लोग घमंड, अभिमान और आकांक्षाओं से भरे होते हैं लेकिन उनमें प्रभु से माँगने की सुबुद्धि होती है। प्रभु उन्हें वांछित वस्तुओं का कुछ भाग प्रदान करते हैं।

दूसरे प्रकार का भक्त, संसार के कष्टों से राहत के लिए प्रभु से याचना करता है लेकिन वह पहले वर्ग के लोगों से बेहतर होता है क्योंकि वह प्रभु की इच्छा का पालन करने के लिए तैयार रहता है। 

तीसरे प्रकार के लोग अपने त्याग, इच्छाहीनता और आत्म समर्पण की भावना से प्रभु को प्रसन्न करते हैं। ऐसा भक्त प्रभु के हृदय में मुक्त ऋषि के रूप में वास करता है। 

Source: http://www.saibalsanskaar.wordpress.com

अनुवादक- अर्चना      

                                               दयालु उल्लू 

आदर्श: प्रेम 

उप आदर्श: सबके लिए सोचना, निस्स्वार्थ प्रेम 

एक भक्त केरल के वयनाड नामक जिले में जंगल के बीच बने एक मंदिर में गया।  मंदिर में दर्शन के बाद जब वह बाहर आ रहा था, उसने पास ही एक नन्ही गिलहरी को देखा जो डर के कारण चूँ चूँ कर रही थी। ज़ाहिर है कि उसकी माँ उसके साथ नहीं थी और एक साँप उसे अपना शिकार बनाने के लिए उसकी ओर आ रहा था। 

उसी क्षण, पास के एक पेड़ से एक बड़ा उल्लू आया और साँप को एक तरफ़ धकेल कर उसने नन्ही गिलहरी को बचा लिया। उल्लू वापस अपने अड्डे पर जाकर बैठ गया लेकिन उसका ध्यान उस बेबस और असहाय नन्ही गिलहरी पर केंद्रित था। 

भक्त उल्लू की सामयिक मदद देखकर मंत्रमुग्ध था। थोड़ी देर बाद, साँप गिलहरी को पकड़ने पुनः आया। और लाचार गिलहरी को बचाने उल्लू फिर से उड़कर आया। उल्लू को देखकर साँप वहाँ से चला गया और नन्ही गिलहरी बच गई। 

लेकिन साँप हार मानने को तैयार नहीं था। कुछ समय बाद वह फिर से आया। साँप को एक बार फिर आते देख, उल्लू बहुत क्रोधित हुआ और इस बार साँप को ख़त्म करने और गिलहरी को उसके क्रूर दुर्भाग्य से बचाने के इरादे से उड़ा।  

यद्यपि गिलहरी, उल्लू का प्राकृतिक शिकार है लेकिन इन दोनों जानवरों के बीच के सार्वभौमिक मातृत्व के भाव को देखकर भक्त अभिभूत हो गया। अपनी माँ की अनुपस्थिति में नन्ही गिलहरी के ख़तरे ने उल्लू के हृदय को व्याकुल कर दिया और उसने अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रतिक्रिया दिखाई। 

मनुष्यों के बीच आजकल जैसा व्यवहार देखने को मिलता है उससे इसकी तुलना करने से भक्त स्वयं को रोक नहीं पाया। 

सीख:

यदि हम अपने आसपास दूर तक फैले प्राकृतिक संबंधों और एक दूसरे के प्रति सहानुभूति पर ध्यान दें, तो हमारे मन का भी विकास होगा और हमारे भीतर भी संसार के सभी प्राणियों के लिए प्रेम भरेगा। इस प्रकार हम ब्रह्मांड के आशीषों के हक़दार बन जाएँगे।

अनुवादक-अर्चना 

Source: http://www.saibalsanskaar.wordpress.com