Archive | May 2015

अहंकारी लाल गुलाब

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आदर्श : उचित आचरण

  उप आदर्श : विवेक

एक ख़ूबसूरत बसंत के दिन जंगल में एक लाल गुलाब खिला. उस जंगल में विभिन्न प्रकार के पेड़ व पौधे उगते थे. rose3जैसे गुलाब ने इधर-उधर देखा, पास के देवदार के वृक्षrose2 ने कहा, “कितना सुन्दर फूल है. काश मैं भी इतना आकर्षक होता.” एक अन्य पेड़ ने कहा, “प्रिय देवदार, उदास मत हो. हमें सब कुछ नहीं मिल सकता है.”

गुलाब ने अपना सर घुमाया और टिप्पणी की, “ऐसा लगता है कि मैं इस जंगल का सबसे सुन्दर पौधा हूँ.” एक सूर्यमुखी ने अपना पीला सर उठाया और कहा, “तुम ऐसा क्यों कहते हो? इस वन में बहुत सारे आकर्षक पौधे हैं. तुम केवल उनमें से एक हो.” लाल गुलाब ने उत्तर दिया, “मैं देख रहा हूँ कि सब मेरी ओर देख रहे हैं और मुझे सराह रहे हैं.” फिर गुलाब ने कैक्टस की ओर देखा और कहा, “काँटों से भरे उस बदसूरत पौधे को देखो.”rose1 देवदार के पेड़ ने कहा, “लाल गुलाब, यह तुम क्या कह रहे हो. कौन कह सकता है कि सुंदरता क्या है? काँटे तुममें भी हैं.”

घमंडी लाल गुलाब ने देवदार की ओर गुस्से से देखा और कहा, “मुझे लगा था कि तुम्हारी पसंद अच्छी है! पर तुमको तो पता ही नहीं है कि खूबसूरती क्या होती है. तुम मेरे काँटों की तुलना कैक्टस के काँटों से कैसे कर सकते हो?”

“कैसा अहंकारी फूल है,” वृक्षों ने सोचा.

गुलाब ने अपनी जड़ें कैक्टस के पास से दूर करने की बहुत कोशिश की पर वह हटा नहीं पाया. जैसे-जैसे दिन बीतते गए, लाल गुलाब कैक्टस की ओर देखकर अपमानजनक बातें कहता था: “यह पौधा व्यर्थ है. कितने दुःख की बात है कि मैं इसका पड़ोसी हूँ.”

कैक्टस कभी परेशान नहीं हुआ. उसने गुलाब को सलाह देते हुए कहा, “भगवान ने जीवन का कोई भी रूप बिना किसी उद्देश्य के नहीं बनाया है.”

बसंत ऋतु बीत गई और मौसम बहुत गरम हो गया. वन में जीवन कठिन हो गया क्योंकि पौधों व पशुओं को पानी चाहिए था और बारिश नहीं हो रही थी. लाल गुलाब मुरझाने लगा. फिर एक दिन गुलाब ने देखा कि गौरैया कैक्टस में अपनी चोंच मारती और तरोताज़ा होकर उड़ जा रही थी.rose5यह रहस्मय था. अतः लाल गुलाब ने देवदार के पेड़ से पूछा कि पंछी क्या कर रहे थे. देवदार के पेड़ ने समझाया कि पंछी कैक्टस से पानी लेते हैं. “पर जब वे छेद करते हैं तो दर्द नहीं होती है?” ,गुलाब ने पूछा.

“हाँ, पर कैक्टस को किसी भी पक्षी को कष्ट झेलते देखना पसंद नहीं है” , देवदार ने उत्तर दिया.

गुलाब ने आश्चर्यचकित होकर अपनी आँखें खोलीं और पूछा, “कैक्टस में पानी होता है?”

“हाँ, तुम भी उससे पानी पी सकते हो. अगर तुम कैक्टस से मदद के लिए कहोगे तो गौरैया तुम्हारे लिए पानी ला सकती है.”

कैक्टस से पानी माँगने के लिए लाल गुलाब अपने पिछले शब्दों व व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा था. परन्तु अंततः उसने कैक्टस से मदद माँगी. कैक्टस दयापूर्वक सहमत हो गया और पंछियों ने अपनी चोंच में पानी भरकर गुलाब की जड़ों को पानी दिया.

इस तरह गुलाब ने सबक सीखा और दुबारा कभी किसी को उनके रंग-रूप से नहीं आँका.

सीख:

कभी भी किसी को उनके भेष से मत पहचानो. रंग-रूप भ्रमकारी होते हैं. हम किसी को केवल उनके कार्यों से ही जान सकते हैं ना कि उनके रूप से.

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अनुवादक- अर्चना

तुम जो हो उससे अंतर पड़ता है- मिसेज़ थॉम्पसन

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                 आदर्श : प्रेम
            उप आदर्श : सहानुभूति

स्कूल के प्रथम दिन जब वह अपनी पाँचवी कक्षा के सामने खड़ीं थीं तो उन्होंने एक झूठ कहा. अन्य सभी शिक्षकों के समान, उन्होंने अपने विद्यार्थियों की ओर देखा और कहा कि वह उन सबसे एक समान प्यार करतीं हैं. परन्तु यह असंभव था क्योंकि पहली पंक्ति में टेडी स्टॉलर्ड नामक नन्हा बालक कंधे झुकाए बैठा हुआ था.teddy2

टेडी की तीसरी कक्षा की अध्यापिका ने लिखा था, “इसकी माँ के निधन का इसपर गहरा असर पड़ा है. वह अपनी ओर से अच्छा करने की कोशिश करता है पर उसके पिता उसके कार्य में विशेष रुचि नहीं दिखाते हैं. अगर सही कदम नहीं उठाए गए तो इसके पारिवारिक जीवन का इसपर हानिकारक असर पड़ेगा.”

टेडी की चौथी कक्षा की अध्यापिका ने लिखा था, “टेडी अकेला है और स्कूल में विशेष रुचि नहीं दिखाता है. उसके बहुत सारे दोस्त नहीं हैं और कभी-कभी वह कक्षा में सो जाता है.”teddy3

मिसेज़ थॉम्पसन अब तक समस्या समझ चुकी थीं और वह अपने आप पर शर्मिंदा थीं. टेडी के अतिरिक्त जब अन्य सभी विद्यार्थी उनके लिए चमकीले कागज़ व ख़ूबसूरत फीते से लिपटे क्रिसमस के उपहार लाते थे तो उन्हें और भी बुरा महसूस होता था. टेडी का तोहफा एक मोटे भूरे रंग के कागज़ से बेढ़ंगे तरीके से लिपटा होता था जो उसने किराने के बैग से लिया था.अन्य उपहारों के बीच मिसेज़ थॉम्पसन ने टेडी का तोहफा बहुत सावधानी से खोला. तोहफे में बिल्लौरी पत्थर का एक कंगन था जिसके कुछ पत्थर गायब थे और इत्र की एक बोतल थी जो एक-चौथाई ही भरी हुई थी. इसको देखकर कुछ छात्र हँसने लगे. पर उन्होंने बच्चों की हँसी को दबा दिया जब उन्होंने आश्चर्यता से कहा कि कंगन बहुत सुन्दर हैं और थोड़ा सा इत्र अपनी कलाई पर लगाया.

उस दिन स्कूल ख़त्म होने के बाद टेडी स्टॉलर्ड ने कहा, “मिसेज़ थॉम्पसन, आज आप बिलकुल मेरी माँ के जैसे महक रहीं थीं.” सभी बच्चों के जाने के बाद, वह कम से कम एक घंटे तक रोतीं रहीं.

उस दिन से उन्होंने पढ़ाना, लिखाना और अंकगणित पढ़ाना छोड़ दिया. इसके बदले उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. मिसेज़ थॉम्पसन ने टेडी पर विशेष ध्यान दिया. जैसे-जैसे उन्होंने टेडी के साथ काम करना शुरू किया, उसका दिमाग पुनः जागा और वह जितना उसे प्रोत्साहित करतीं, उतनी ही जल्दी वह प्रत्योत्तर देने लगा. साल के अंत तक टेडी कक्षा के सबसे चतुर छात्रों में से एक बन गया teddy5और मिसेज़ थॉम्पसन के झूठ, कि वह सबसे एक समान प्रेम करेंगीं, के बावजूद टेडी उनका ‘शिक्षक का मनपसंद’ बन गया.

एक साल बाद, उन्हें अपने दरवाज़े के नीचे टेडी से एक नोट मिला. उसमें लिखा था कि ज़िन्दगी में मिलीं सारी अध्यापिकाओं में वह सबसे अच्छी अध्यापिका थीं.

छह वर्ष बीत जाने पर उन्हें टेडी से एक और नोट मिला. उसमें लिखा था कि उसने उच्च विद्यालय ख़त्म कर लिया है, वह कक्षा में तृतीय स्थान पर रहा और मिसेज़ थॉम्पसन अभी भी उसके जीवन की सबसे अच्छी अध्यापिका थीं.

उसके चार साल बाद उन्हें एक और चिट्ठी मिली. उसमें लिखा था कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद उसने पढ़ाई जारी रखी है और शीघ्र ही वह सबसे उत्कृष्ट अॉनर्स के साथ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट बनेगा. teddy6उसने मिसेज़ थॉम्पसन को विश्वास दिलाया कि वह अभी भी उसकी सबसे अच्छी व मनपसंद अध्यापिका थीं.

फिर चार साल और बीत गए और एक बार फिर एक चिट्ठी आई. इस बार उसने बताया कि स्नातक की डिग्री हासिल करने बाद उसने आगे पढ़ाई जारी रखने का निश्चय किया. चिट्ठी में टेडी ने स्पष्ट किया कि मिसेज़ थॉम्पसन अभी भी उसकी सबसे अच्छी व मनपसंद अध्यापिका थीं. पर अब उसका नाम कुछ अधिक लम्बा था…चिट्ठी में हस्ताक्षर थे, थिओडोर ऍफ़. स्टॉलर्ड, एम. डी.

कहानी यहीं समाप्त नहीं हुई. बसंत के महीने में एक और चिट्ठी आई. टेडी ने कहा कि वह एक लड़की को मिला था और उससे शादी करने वाला है. उसने आगे लिखा कि उसके पिता की कुछ साल पहले मृत्यु हो गई थी. अतः उसने मिसेज़ थॉम्पसन से पूछा कि शादी में जो स्थान आमतौर पर दूल्हे की माँ का होता है, वहाँ पर क्या वह बैठने के लिए सहमत होंगीं?

अवश्य ही मिसेज़ थॉम्पसन ने ऐसा ही किया. और उन्होंने वह कंगन पहना जिसके अनेकों बिल्लौरी पत्थर गायब थे. इसके अलावा, उन्होंने वह इत्र भी लगाया जो टेडी की माँ ने उनके एक साथ मनाई आखिरी क्रिसमस पर लगाया था.

दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और डॉ स्टॉलर्ड ने मिसेज़ थॉम्पसन के कान में फुसफुसाया, “मुझमें विश्वास करने के लिए धन्यवाद, मिसेज़ थॉम्पसन. मुझे महत्त्वपूर्ण महसूस कराने के लिए और यह दिखाने के लिए कि मैं बदलाव ला सकता हूँ, बहुत धन्यवाद.”

आँखों में आँसू लिए, मिसेज़ थॉम्पसन वापस फुसफुसाईं. उन्होंने कहा, “टेडी तुम गलत कह रहे हो. वो तुम थे जिसने मुझे सिखाया कि मैं अंतर ला सकती हूँ. तुमसे मिलने के पहले तो मुझे पढ़ाना आता ही नहीं था.”

  सीख :

यह कहना बहुत मुश्किल है कि तुम्हारे कार्यों का किसी और की ज़िन्दगी पर क्या असर पड़ेगा. जीवन में कृपया इस बात का ध्यान रखें और किसी अन्य के जीवन में बदलाव लाने का आज से ही प्रयास करें. फरिश्तों में विश्वास करें और फिर किसी अन्य के लिए फरिश्ता बनकर मदद लौटाएं.

“कोई भी काम छोटा नहीं होता है. मानवता के सुधार के लिए किये गए हर श्रम की प्रतिष्ठा व महत्ता होती है. अतः उसे उत्कृष्टता से निभाना चाहिए” – मार्टिन लूथर किंग, जूनियर

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अनुवादक- अर्चना

मानवता को बचाने के लिए तीन दौड़ें

आदर्श : उचित आचरण
  उप आदर्श : दूसरों के लिए सहानुभूति

एक प्राचीन नीतिकथा हमें एक हृष्ट-पुष्ट लड़के की कहानी बताती है जो सफलता का भूखा था. raceउसके लिए जीतना ही सब कुछ था और वह सफलता को परिणामों से तोलता था.

एक दिन वह लड़का अपने निवासी गाँव में दो अन्य लड़कों के साथ भागने की प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा था.race1 इस खेल सम्बन्धी नज़ारे को देखने बहुत से लोग एकत्रित हुए. इनमें ख़ास एक वृद्ध व बुद्धिमान व्यक्ति थे जो इस लड़के के बारे में सुनकर बहुत दूर से आए थे .race5

दौड़ शुरू हुई. लगभग अंतिम चरण तक तीनों प्रतियोगी बराबर थे परन्तु फिर छोटे लड़के ने अपना इरादा और पक्का किया और वह ज़्यादा दृढ़ता, ताकत एवं शक्ति से भागा. अंत में उसने प्रतियोगिता जीत ली.

जनता अति आनंदित व उत्साहित थी और सबने लड़के की तरफ हाथ से इशारा किया. परन्तु वह ज्ञानी व्यक्ति शांत व स्थिर रहे और उन्होंने कोई भी भावना व्यक्त नहीं की. वह छोटा लड़का बहुत महत्वपूर्ण व गर्वान्वित महसूस कर रहा था.

दूसरी प्रतियोगिता की घोषणा हुई और उस लड़के के साथ भागने के लिए दो अन्य जवान व दुरूस्त दावेदार आगे आए. दौड़ आरम्भ हुई और निःसंदेह वह छोटा लड़का एक बार फिर प्रथम आया. सभी लोग बहुत खुश थे और सबने उस लड़के की ओर संकेत करते हुए उसे प्रोत्साहित किया. एक बार फिर ज्ञानी व्यक्ति ने कोई भी मनोभाव व्यक्त नहीं किया और वह शांत व निश्चल थे. वह लड़का मगर महत्वपूर्ण व गर्वित महसूस कर रहा था.

“एक और दौड़, एक और दौड़” , नन्हें बालक ने निवेदन किया. वृद्ध व ज्ञानी व्यक्त आगे आए और उन्होंने दो नए दावेदार प्रस्तुत किए – एक वयोवृद्ध निर्बल महिला race3और एक अंधा आदमी. race2“यह क्या है?” नन्हें बालक ने प्रश्न किया. “यह कोई प्रतियोगिता नहीं है, ” उसने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा. “दौड़ो !” ज्ञानी व्यक्ति ने कहा. प्रतियोगिता शुरू हुई और केवल वह लड़का ही दौड़ पूरी कर पाया. दूसरे दो दावेदार शुरूआत की रेखा पर ही खड़े थे. छोटा लड़का अत्यंत प्रसन्न था और उसने खुशी से अपनी बाहें ऊपर उठाईं. एकत्रित भीड़ मगर शांत थी और लोगों ने लड़के के प्रति कोई भावना व्यक्त नहीं की.

“क्या हो गया? लोग मेरी सफलता में क्यों नहीं शामिल हो रहे हैं? उसने ज्ञानी व्यक्ति से पूछा. “दुबारा दौड़ो, ” बुद्धिमान व्यक्ति ने उत्तर दिया. “इस बार दौड़ एक साथ ख़त्म करना. तुम तीनों एक साथ दौड़ना” , ज्ञानी पुरुष ने कहा. नन्हें लड़के ने क्षणभर सोचा और अंधे व्यक्ति व कमज़ोर वृद्ध औरत के बीच खड़े होकर, दोनों दावेदारों का हाथ पकड़ लिया. दौड़ शुरू हुई और छोटा लड़का आखिरी स्थान तक धीरे-धीरे चला और तीनों ने एक साथ दौड़ पूरी की. जनता अति आनंदित थी और सबने लड़के की ओर संकेत करते हुए उसे प्रोत्साहित किया. race4ज्ञानी व्यक्ति मुस्कुराये ओर उन्होंने हल्के से सिर हिलाया. नन्हें लड़के को गर्व व शान महसूस हुई.

लड़के ने वृद्ध व्यक्ति से पूछा, “मुझे समझ नहीं आया! यह भीड़ किसके लिए जयजयकार कर रही है?” ज्ञानी व वृद्ध व्यक्ति ने नन्हें लड़के की आँखों में देखा, उसके कंधों पर अपना हाथ रखा ओर मृदुलता से जवाब दिया, “बेटा, तुमने इस दौड़ में अब तक की किसी भी अन्य दौड़ से कहीं अधिक जीता है. इस दौड़ में जनता किसी एक विजेता के लिए जयजयकार नहीं कर रही है.”

मानवता के लिए अगला विकासमूलक कदम मानव से विनम्रता है.

सीख:

       जीतना अच्छा है पर दूसरों के साथ जीतना सबसे अच्छा है.

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अनुवादक- अर्चना

नूडल्स का प्याला

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   आदर्श : प्रेम
उप आदर्श : अपने माता-पिता के प्रति प्रेम व आदर

उस रात, सु का अपनी माँ के साथ झगड़ा हुआ noodles1और फिर गुस्से में सु घर से बाहर चली गई. रास्ते में उसे ध्यान आया कि उसकी जेब में पैसे नहीं हैं. उसके पास घर पर फ़ोन करने के लिए पर्याप्त सिक्के भी नहीं थे.

उसी समय वह नूडल्स की एक दुकान के पास से गुज़री. noodles2खाने की मधुर सुगंध से उसे अचानक बहुत ज़ोर से भूख लगी. उसे नूडल्स खाने की बहुत इच्छा हुई पर उसके पास पैसे नहीं थे.

दुकानदार ने उसे काउंटर पर कुछ हिचकिचाते हुए खड़े देखा और पूछा, “अरे छोटी, क्या तुम एक कटोरा नूडल्स खाओगी?”
पर….पर मेरे पास पैसे नहीं हैं…उसने संकोच करते हुए उत्तर दिया.
ठीक है, मैं तुम्हें दावत देता हूँ…दुकानदार ने कहा- अंदर आओ, मैं तुम्हारे लिए नूडल्स बनाता हूँ.

कुछ देर बाद दुकानदार सु के लिए गरमागरम नूडल्स का प्याला लेकर आया. noodles3थोड़ा खाने के बाद, सु रो पड़ी.

क्या हुआ? – दुकानदार ने पूछा.
कुछ नहीं. आपकी अनुकम्पा से मैं बहुत प्रभावित हूँ – सु ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा.
सड़क पर एक अनजान भी मुझे नूडल्स का कटोरा देता है और मेरी माँ ने झगड़ा करके मुझे घर से बाहर निकाल दिया. वह निष्ठुर हैं.

दुकानदार ने गहरी साँस ली :
बेटा, तुम ऐसा क्यों सोचती हो? दोबारा सोचो. मैंने तो तुम्हें सिर्फ नूडल्स का एक प्याला दिया है और तुम्हें कृतज्ञता महसूस हो रही है. तुम्हारी माँ ने तुम्हें बचपन से पाला है. तुम उनके प्रति आभारी क्यों नहीं हो? तुमने उनकी अवज्ञा क्यों की?

ऐसा सुनने पर सु वास्तव में हैरान थी.

“मैंने ऐसा क्यों नहीं सोचा? एक अजनबी से मिले नूडल्स के एक कटोरे ने मुझे इतना एहसानमंद महसूस कराया. मेरी माँ ने बचपन से मेरी देखभाल की है और मुझे कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ, ज़रा भी नहीं.”noodles4

घर लौटते समय, सु ने मन में सोचा कि वह घर पहुँचने पर अपनी माँ से क्या कहेगी: “माँ, मैं शर्मिंदा हूँ. मुझे पता है कि गलती मेरी है, मुझे कृपया क्षमा कर दो….”
सीढ़ियाँ चढ़ने पर, सु ने अपनी माँ को चिंतित देखा. सु को हर जगह खोजकर वह थक चुकीं थीं. सु को देखने पर, माँ ने कोमलता से कहा, “सु, अंदर आओ बेटा. तुम शायद बहुत भूखी होगी? मैंने चावल बनाए हैं और खाना पहले से ही बनाकर रखा है. तुम गरम-गरम खाना खा लो…….”

सु से और नियंत्रण नहीं हुआ और वह अपनी माँ की बाहों में रोने लगी.

जीवन में हम अपने आस-पास के लोगों की छोटी-सी करनी को भी आसानी से सराह देते हैं पर अपने सगे-संबंधियों, ख़ास-तौर से अपने माता-पिता के बलिदानों को स्वाभाविक मान लेते हैं.

   सीख :

अभिभावकीय प्रेम व सहानुभूति सबसे अधिक उत्कृष्ट उपहार है जो हमें जन्म से ही दिया गया है.

हमारा पालन-पोषण करने के लिए माता-पिता हमसे कोई भी अपेक्षा नहीं करते हैं…..पर क्या हमने अपने माता-पिता के बशर्ते बलिदान को कभी सराहा है?

अपने माता-पिता से प्रेम करो और उनका आदर करो. उनके बिना हमारा अस्तित्व नहीं है.noodles5

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अनुवादक- अर्चना