Archive | January 2014

उन्नी – एक मासूम भक्त

sarvadharma plus prayer

आदर्श : भक्ति

उप आदर्श : निष्ठा, विश्वास

मंदिर के एक पुजारी ने एक बार अपने बारह वर्षीय पुत्र, उन्नी को ईश्वर को भोजन अर्पण करने का आदेश दिया। मंदिर में केवल एक ही पुजारी था और उन्हें किसी अत्यावश्यक कार्य से बाहर जाना था। उन्नी ने प्रभु को चावल भेंट किए। अपने भोलेपन में उसे विश्वास था कि मूर्ति भोजन का सेवन करती है। परन्तु मूर्ति हिली भी नहीं। उन्नी पड़ोस की दुकान से कुछ नमकीन और दही खरीद कर लाया। उसने दही को चावल में मिलाया और यह सोचकर कि भगवान को यह पसंद आएगा, पुनः भोजन अर्पण किया। परंतु इस बार भी मूर्ति स्थिर रही। उन्नी ने भगवान की मूर्ति को बहुत समझाया, विनती की और धमकाया भी, पर मूर्ति वैसे ही खड़ी रही। वह रोने लगा क्योंकि उसे अहसास हुआ कि वह ईश्वर को भोजन नहीं करा पा रहा था। उसने भगवान को चिल्लाकर पुकारा और कहा कि उसके पिता उसकी पिटाई करेंगे। भगवान को उन्नी पर बहुत दया आई और उन्होंने भोजन की थाली ग़ायब कर दी। वह बालक संतुष्ट होकर मंदिर से चला गया। जब उसके पिता मंदिर वापस लौटे तो भोजन की थाली खाली देख उन्नी पर बेहद नाराज़ हुए। उन्नी ने अपने पिता से आग्रह किया कि ईश्वर ने वास्तव में भोजन स्वीकृत किया था। उन्नी के मासूम बोल सुनकर उसके पिता आगबबूला हो गए। उन्हें यकीन था कि उन्नी झूठ बोल रहा है और भोजन उसने स्वयं खाया था। वह उन्नी को मारने ही वाले थे कि तभी एक दिव्य वाणी सुनाई पड़ी, “अपराधी मैं हूँ। उन्नी निर्दोष है।”

इस प्रकार भगवान ने अपने मासूम व निर्दोष भक्त को बचा लिया।

                      बाघ और लोमड़ी

आदर्श : उचित आचरण 

उप आदर्श: उत्तरदायित्व, ज़िम्मेदारी 

एक घने जंगल में एक लोमड़ी रहती थी जिसने सम्भवतः जाल से बचकर भागते हुए, अपने आगे के पैरों को इस्तेमाल करने की शक्ति खो दी थी। एक व्यक्ति, जो जंगल के किनारे रहता था, लोमड़ी को देखकर अक्सर अचम्भित होता था कि वह अपने खाने की व्यवस्था कैसे करती होगी। इस रहस्य का पता लगाने के लिए, एक दिन वह पास में छुपकर लोमड़ी को ग़ौर से देखने लगा। उसने देखा कि पंजों में ताज़ा शिकार लेकर एक बाघ उस तरफ़ आ रहा था। शिकार को ज़मीन पर रखकर, बाघ ने भर पेट खाया और बाकी लोमड़ी के लिए छोड़ दिया।

ऐसा दिन प्रतिदिन होता रहा। तब उस व्यक्ति को समझ में आया कि इस विश्व के महान प्रबंधक ने बाघ के द्वारा लोमड़ी के लिए भोजन भेजा था। वह व्यक्ति सोचने लगा, “ऐसे रहस्यमय तरीक़े से यदि कोई अदृश्य शक्ति इस लोमड़ी के लिए खाना भेजकर उसकी देखभाल कर सकती है, तो क्यों ना मैं भी एक कोने में आराम से बैठूँ और अपना दैनिक भोजन उपलब्ध करवाऊँ?” इसे आजमाकर उसने यह देखने का फ़ैसला किया कि वह महान शक्ति क्या उसे भी भोजन प्रदान करेगी?

दृढ़ विश्वास के साथ, वह महान प्रबंधक द्वारा भेजे अपने भोजन का इंतज़ार करता रहा लेकिन, दिन पर दिन बीतते गए और कुछ भी नहीं हुआ। जैसे-जैसे समय बीतता गया, भूख के कारण उसका वजन और ताक़त कम हो गई और वह हड्डियों का ढाँचा बन गया। लेकिन इसके बावजूद वह अपने फ़ैसले पर अडिग था। 

 एक दिन वह बेहोश होने के कगार पर था कि उसे एक आवाज सुनाई दी, “पुत्र! तुम्हें ग़लती लगी है, अब तो सत्य को पहचानो! तुम्हें विकलांग लोमड़ी की नक़ल करने के बजाय बाघ के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए था।“

सीख:

जिम्मेदारी हमें ताक़त देती है और लापरवाही हमें कमजोर बनाती है। भगवान उनकी सहायता करते हैं जो अपनी सहायता करते हैं। परिश्रम के बिना इनाम नहीं मिलता है।

source: http://www.saibalsanskaar.wordpress.com

अनुवादक- अर्चना