आदर्श : उचित आचरण
उप आदर्श : दूसरों के लिए प्रेम
एक समुद्री यात्रा करता हुआ जहाज समुद्र में तूफ़ान के दौरान नष्ट हो गया था. जहाज के केवल दो व्यक्ति एक छोटे से बंजर द्वीप पर तैर पाए थे.
दोनों जीवित व्यक्ति जो अच्छे दोस्त थे, समझ नहीं पा रहे थे की वे क्या करें. अतः दोनों इस बात से सहमत हुए कि उनके पास भगवान की प्रार्थना के इलावा और कोई उपाय नहीं था. पर यह पता लगाने के लिए कि किसकी प्रार्थना अधिक शक्तिशाली है, उन्होंने द्वीप को आपस में बाँटने का फैसला किया और उसके विपरीत भागों में रहने के लिए सहमत हुए.
उन्होंने सबसे पहले खाने के लिए प्रार्थना की. अगली सुबह पहले व्यक्ति ने द्वीप के अपने वाले हिस्से में एक फलों से भरा वृक्ष देखा. और उसने उस वृक्ष के फल को खा लिया. दूसरे व्यक्ति के ज़मीन का टुकड़ा बंजर रहा.
एक हफ्ते बाद पहला व्यक्ति अकेला था और उसने एक पत्नी के लिए विनती करने का निश्चय किया. अगले दिन एक और जहाज नष्ट हुआ और उस जहाज से एक ही महिला बच पाई. वह तैर कर पहले वाले व्यक्ति के हिस्से वाले टापू पर आ गई. द्वीप के दूसरे वाले भाग पर अभी भी कुछ भी नहीं था.
शीघ्र ही पहले व्यक्ति ने एक घर, कपड़े तथा और अधिक अन्न की प्रार्थना की. अगले दिन जादू से यह सब उसे प्राप्त हो गया. परन्तु दूसरे व्यक्ति के पास अभी भी कुछ भी नहीं था.
अंततः पहले व्यक्ति ने एक जहाज के लिए विनय किया ताकि वह और उसकी पत्नी द्वीप छोड़ सकें. अगली सुबह उसे द्वीप के अपने टुकड़े पर एक जहाज खड़ा मिला. पहला व्यक्ति अपनी पत्नी सहित जहाज पर चढ़ गया और दूसरे व्यक्ति को टापू पर ही छोड़ने का फैसला किया.
उसने दूसरे व्यक्ति को भगवान का आशीर्वाद ग्रहण करने के लिए अयोग्य समझा चूँकि उसकी कोई भी प्रार्थना पूर्ण नहीं हुई थी.
जब जहाज चलने वाला था, पहले व्यक्ति ने स्वर्गलोक से एक आवाज़ की गर्जन सुनी, “तुम अपने साथी को द्वीप पर क्यों छोड़ रहे हो?”
“मेरे वरदान केवल मेरे हैं चूँकि वो मैं था जिसने उनके लिए प्रार्थना की थी,” पहले व्यक्ति ने उत्तर दिया. “उसकी सभी प्रार्थनाएँ अनुत्तरित हैं अतः वह किसी भी चीज़ का अधिकारी नहीं है.”
“तुमने गलत समझा है.” आवाज़ ने उसे फटकारा. “उसकी केवल एक ही प्रार्थना थी, जिसका मैंने उत्तर दे दिया. अगर उसकी प्रार्थना नहीं होती तो तुम्हें मेरा कोई भी वरदान नहीं मिलता.”
“मुझे बताइए,” पहले व्यक्ति ने आवाज़ से पूछा,”उसने ऐसी क्या प्रार्थना की थी कि मैं किसी भी चीज़ के लिए उसका आभारी रहूँ?”
“उसने प्रार्थना की थी कि तुम्हारी सभी प्रार्थनाएँ उत्तरित हों.”
सीख :
हमारे आशीष केवल हमारी प्रार्थनाओं का फल नहीं है बल्कि दूसरों की हमारे लिए की गईं प्रार्थनाओं का भी फल है. अपने दोस्तों का मान करो, अपने प्रियजनों को पीछे मत छोड़ों.
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अनुवादक- अर्चना