आदर्श: विश्वास
उप आदर्श: भरोसा
ब्रेंडा अपने पहले प्रस्तरारोहन(रॉक क्लाइम्बिंग) के दौरान ग्रेनाइट की एक खड़ी चट्टान पर चढ़ाई कर रही थी। वह लगभग आधे रास्ते पहुँच चुकी थी और चटान के एक आगे निकले हुए हिस्से पर खड़ी होकर दम भर का आराम कर रही थी। तभी उसके आँखों के सामने की सुरक्षा रस्सी अचानक टूट गई और उसके प्रहार से ब्रेंडा के कॉन्टैक्ट लेंस गिर गए। “बहुत बढ़िया!”, उसने सोचा। “यहाँ मैं चट्टान के कोने पर खड़ी हूँ, धरातल से हज़ारों फ़ीट दूर और चट्टान की शिखर भी सैकड़ों फ़ीट दूर है और अब मेरी नज़र धुंधली हो गई है।“
उसने अपने चारों ओर नज़र घुमाकर ध्यान से देखा कि शायद उसके लेंस वहाँ कहीं गिरे हों। लेकिन उसे लेंस कहीं नहीं दिखे।
उसके अंदर की घबराहट बढ़ती जा रही थी अतः वह प्रार्थना करने लगी। उसने मन की शांति और अपने कॉन्टैक्ट लेंस मिल जाने के लिए प्रार्थना की।
जब वह चट्टान की शिखर पर पहुँची, उसकी एक मित्र ने लेंस के लिए उसकी आँख व कपड़ों की जाँच की लेकिन उसे लेंस नहीं मिले। यद्यपि शिखर पर पहुँचकर वह खुश थी लेकिन उसे दुःख था कि वह पहाड़ों की शृंखला को स्पष्ट रूप से नहीं देख पा रही थी।
उसने ईश्वर से प्रार्थना की, “हे भगवन, आप इन सभी पहाड़ों को देख सकते हैं। आप हर पत्थर व पत्ते को जानते हैं और आपको ठीक-ठीक पता है कि मेरे कॉन्टैक्ट लेंस कहाँ हैं। कृपया मेरी मदद कीजिए।“
बाद में, जब वह चट्टान की पगडंडी से चलते हुए नीचे पहुँचे तब वह पर्वतारोहियों के एक अन्य समूह से मिले जिन्होंने चट्टान की चढ़ाई तभी शुरु की थी। उनमें से एक चिल्लाकर बोला, “अरे सुनो! क्या किसी के कॉन्टैक्ट लेंस गुम हुए हैं?”
यह चौंका देने वाली बात है लेकिन आप जान ही गए होंगे कि पर्वतारोही ने लेंस क्यों देखें थे? एक चींटी यह लेंस लेकर चट्टान पर पड़ी एक टहनी की ओर धीरे-धीरे बढ़ रही थी!
कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती। ब्रेंडा के पिता एक व्यंगचित्रकार हैं। जब उसने उन्हें चींटी, प्रार्थना और कॉन्टैक्ट लेंस की अविश्वसनीय कहानी सुनाई तो उन्होंने कॉन्टैक्ट लेंस लेकर जाती हुई चींटी का व्यंगचित्र बनाया जिसका शीर्षक था, “प्रभु, मुझे नहीं पता कि आप मुझे यह क्यों लेकर जाना चाहते हैं। मैं इसे खा नहीं सकती और यह बेहद भारी है। लेकिन अगर आप यही करना चाहते हैं तो मैं आपके लिए इसे लेकर जाऊँगी।“
सीख:
हमारे लिए यह अच्छा होगा कि हम स्वयं को याद करवाते रहें, “भगवन, मुझे नहीं पता कि आप मुझे से यह भार क्यों उठवाना चाहते हैं। मुझे इसमें कुछ भी अच्छा नहीं दिख रहा है और यह अत्यधिक भारी है। लेकिन यदि आप मुझसे यह उठवाना चाहते हैं तो मैं करूँगी।“
ईश्वर योग्य व्यक्तियों को नहीं बुलाते हैं, वह जिन्हें बुलाते हैं उन्हें योग्य बना देते हैं।
ईश्वर हमारे अस्तित्व का स्त्रोत हैं और हमारे उद्धारक हैं। ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास और आत्म-समर्पण हमें अद्भुत साहस देता है विशेषकर मुश्किल समय में।
Source: http://www.saibalsanskaar.wordpress.com
अनुवादक- अर्चना