आदर्श : उचित आचरण
उप आदर्श : विनम्रता
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक अत्यधिक विनम्र व्यक्ति थे और उनका यह स्वभाव अक्सर दूसरों को प्रेरित करता था. उनके जीवन से सम्बंधित अनेकों कहानियाँ उनकी सादगी व नम्रता को दर्शाती हैं. उनके इसी स्वभाव तथा समाज के प्रति योगदान ने उन्हें भारत भर में मशहूर व आदरणीय व्यक्ति बना दिया था.
यह घटना उस समय की है जब ईश्वर चन्द्र विद्यासागर अपने कुछ मित्रों के साथ कोलकता विश्वविद्यालय शुरू करने की दिशा में कार्य कर रहे थे. वह इसके लिए चन्दा इकट्ठा कर रहे थे. अपने साथियों के मना करने के बावजूद भी, वह इस सिलसिले में अयोध्या के नवाब की हवेली में गए. नवाब एक उदार व्यक्ति नहीं था. अतः जब विद्यासागर नवाब से मिले और उसे पूरी स्थिति से अवगत कराया तो नवाब ने बहुत ही निरादर और तिरस्कार भाव से विद्यासागर के चंदे वाली थैली में अपने जूते डाल दिए. विद्यासागर ने बिलकुल भी विरोध नहीं किया और उनका धन्यवाद करके वहाँ से चले आए.
अगले दिन नवाब की हवेली के सामने विद्यासागर ने नवाब के जूतों की नीलामी आयोजित की. नवाब को प्रसन्न करने के लिए नवाब के जागीरदार तथा दरबारियों सहित, बहुत सारे लोग आगे आए और बोली लगाने लगे. जूतों की बिक्री १००० रुपयों में हुई. यह सुनकर नवाब बहुत खुश हुआ और उसने भी १००० रुपयों की रकम दान में दी.
यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि जब नवाब ने दान-पात्र में अपने जूते डाले थे तब विद्यासागर विरोध कर सकते थे. वह इसे अपना अपमान समझ कर उदास हो सकते थे. इसके विपरीत उन्होंने उन जूतों का प्रयोग अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए किया. उन्हें न केवल पैसे मिले बल्कि वह नवाब को भी प्रसन्न करने में सफल हो पाए. उन्होंने सदा अपनी व्यक्तिगत भावनाओं से उपर उठकर अपने लक्ष्य की दिशा में काम किया. और अंततः कोलकता विश्वविद्यालय खोलने का उनका सपना साकार हुआ.
सीख :
प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने पर हमें शांत रहकर धैर्यता से काम लेना चाहिए. हमें अपने लक्ष्य को अपने अहम से ऊँचा रखना चाहिए. जीवन के उच्च उद्देश्य हेतु हमें अपनी पसंद व नापसंद को वश में रखना चाहिए. जब हम ईश्वर चन्द्र के विनम्र भाव जैसा गुण का विकास कर पायेंगें तब हम अपनी व्यक्तिगत भावनाओं पर नियंत्रण रखकर, अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं और जीवन में सफल हो सकते हैं.
source: http://www.saibalsanskaar.wordpress.com
अनुवादक- अर्चना